अंधकार के बादल और तुलसी कि छाया
🔥 ॐ कार्मिक । आरंभ । 🔥
मैं कौन हूँ? मैं क्यों हूँ? - ख़ुद से पूछें
✍️ आत्मगुरु से जीवन दर्शन
ॐ सूत्र वाक्य
- यूंही टूटना तेरे आत्मविश्वास का अंधकार के प्रभाव में।
- अंधकार वो रोशनी है, जो मौका देता हैं तेरे आत्मचिंतन के दीपक को जलाने का
- जैसे। ज्योत जलती है अंधकार मैं
परिचय
जीवन में कई बार ऐसा मोड़ आता है, जब चारों तरफ़ से सिर्फ़ मुश्किलें ही मुश्किलें नज़र आती हैं। ऐसा लगता है जैसे हर दिशा में अंधकार ही अंधकार है। अचानक आए इन तूफ़ानों ने मेरे जीवन को भी ऐसे ही एक मोड़ पर ला खड़ा किया, जहाँ मुझे लगा कि अब आगे बढ़ना असंभव है। यह कहानी मेरी उसी यात्रा की है, जहाँ मैंने अंधकार में आशा की एक किरण ढूँढ़ी।
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ज़िम्मेदारियों का नया जन्म
जैसे अचानक आसमान में बादल सूर्य को घेर लेते हैं, वैसे ही मेरे जीवन ने एक नया मोड़ लिया। मेरे सर पर अंधकार के बादलों की छाया मंडरा रही थी। एक ओर हमारी ज़िम्मेदारियों ने फिर जन्म ले लिया था। अब मेरे बेटे की पढ़ाई और शादी का बोझ मेरे कंधों पर आ गया था। साथ ही, कुछ सामाजिक ज़िम्मेदारियाँ और खेत के कार्य भी थे, जो मेरे मन को और भारी कर रहे थे।
कड़वे अनुभव और अंधकार का मुँह
दूसरी ओर, मेरे जीवन के कड़वे अनुभवों और धोखे ने मुझे अंधकार के मुँह में धकेल दिया था। ये वेदनाएँ मेरे आत्मा को डस रही थीं, और यह दर्द मुझे कभी-कभी आधी रात को जगा देता था। मैं अपने आँसुओं को रोक नहीं पाता था और एक गहरा अकेलापन महसूस करता था।
एक समय ऐसा भी आया, जब मुझे लगा कि यहाँ से ख़ुद को संभालना असंभव-सा है। लेकिन फिर भी, मेरी आशा की किरण और उम्मीद अभी भी जीवित थी।
आंतरिक शक्ति और श्रद्धा का केंद्र
मुझे मालूम था कि भले ही कोई और हो या न हो, मेरी आंतरिक शक्तियाँ मेरे साथ थीं। मैं उन्हें जगा चुका था और मैं इतना कमज़ोर नहीं था कि बाहरी विकृतियों के जाल में फँस जाऊँ। मेरा ध्यान अब एक श्रद्धा की ओर बढ़ा।
मेरे गाँव में एक बहुत पुराने समय का तुलसी का पौधा है, और यह दूर-दूर के यात्रियों के लिए श्रद्धा का केंद्र है। बुज़ुर्ग कहते हैं कि जब पांडव हिमालय की तलहटी में अपने अस्तित्व की आहुति देने जा रहे थे, तब उन्होंने यहाँ विश्राम किया था और धर्मराज युधिष्ठिर ने सुबह उठकर तुलसी के दातुन से अपने दाँत साफ़ किए थे। यह जानकर यह पौधा मेरी श्रद्धा का केंद्र बन गया।
धर्मराज के समक्ष और एक स्वप्न
एक दिन मैं सुबह पाँच बजे दर्शन करने गया और मैंने मन ही मन धर्मराज युधिष्ठिर से कई प्रश्न किए। मेरा दिल करुणा से भर गया। मैं स्वस्थ होकर घर लौटा, लेकिन उसी रात मुझे एक स्वप्न आया। न जाने धर्मराज युधिष्ठिर ने मेरी आवाज़ को सुना हो, ऐसा मुझे सुबह उठकर महसूस हुआ।
निष्कर्ष
मेरे प्यारे बंधुओं ये कोई मेरा एक नहीं है ।ये मृत्यु लोक के हर इंसान के जीवन वास्तविकता है कोई उसे बोझ बना कर जीता है तो कोई उसे अपना शस्त्र बना लेता है, क्या दुर्योधन न होता तो अर्जुन को कोई पहचानता नहीं, हर विपत्ति को अपनी ताकत बना लो और आगे बढ़े
🌾 “कर्मयोगी की पहचान, कर्म में नहीं — सत्य में है।” 🌾
— आत्मगुरु।
अतः सत्य के इस यज्ञ में सहभागी बनें।
🙏 अटल घोषणा: मेरे ये मौलिक विचार और सूक्ष्म प्रेरणा यथार्थ का हिस्सा मात्र नहीं हैं। यह ज्ञान की वह पूंजी है, जो आगे चलकर ‘जीवन दर्शन ग्रंथ’ का रूप लेगी। मेरी यात्रा में सहभागी बनें।
“मेरे पास इतना समय कहाँ है कि मैं ग्रंथ, गुरु और पुस्तक पढ़ूँ,
मैं तो ख़ुद को पढ़ने में व्यस्त हूँ,
मैं तो प्रकृति और मानव को पढ़ने में खोया हूँ।”
ज्ञान की पूंजी बाहर नहीं, भीतर की गहराई में है।
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बहुत सरस
ReplyDeleteSaras
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