डर:आत्मविश्वास की कमी का वहम (Dar: Aatmvishwas Ki Kami Ka Vaham)
🔥 ॐ कार्मिक । आरंभ । 🔥
मैं कौन हूँ? मैं क्यों हूँ? - ख़ुद से पूछें
✍️ आत्मगुरु से जीवन दर्शन
ॐ सूत्र वाक्य
🔥 आज का अटल सूत्र: डर का तोड़ 🔥
मन मेला तन उजला, तन मेला मन उजला, इसमें उलझा संसार ।। जजआ
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"जीवन कि गहराई में उतरते हुए, मुझे एक अनोखा विचार आया। ये विचार वह अंधकार है, जिसे हर इंसान अपने भीतर महसूस करता है, और यही अंधकार है, हमारे बीच डर (dar) बन कर खड़ा है।"
"ये डर ( fear) ही वह माया मोह है, जो श्रेष्ठ को भी धोखा दे जाता हैं । इस डर के सत्य को मेने समझा है, और अब उस सत्य से आपको पूरी गहराई से परिचित करना मेरा कर्मयोगी कर्तव्य है।"
आगे पढ़े, और जाने की डर आपके 'तोल'को कैसे कम करता है।
यह वहम है कि हमारी समस्या बाहर है, जबकि वह हमारे भीतर जड़ जमाए बैठी है।
आज मैं उस अंधकार पर प्रहार करूँगा, जिसने दुनिया के हर इंसान को जकड़ रखा है—डर (Dar)।
डर की वास्तविकता: सिक्के का सच
दुनिया डर को परिस्थितियों से देखती है, लेकिन कर्मयोगी इसे जड़ से देखता है। मैंने अपने 42 साल के जीवन निचोड़ में पाया है:डर आत्मविश्वास की कमी के सिक्के की बाजुएं हैं।(Dar Aatmvishwas Ki Kami Ke Sikke Ki Baajuyein Hain.)
डर कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है; यह केवल आत्मविश्वास (Aatmvishwas) का अभाव है। जहाँ आत्मविश्वास कम हुआ, वहीं डर का सिक्का उछलकर ऊपर आ जाता है।
डर के दो सबसे बड़े भ्रम
परिणाम का डर (Parinaam Ka Dar): कर्म से पहले फल की चिंता करना। कर्मयोगी का कर्तव्य है कि इरादे की शुद्धता पर ध्यान दे, न कि फल पर।लोक-लज्जा का डर (Lok-Lajja Ka Dar): 'लोग क्या कहेंगे' का डर। यह तब उत्पन्न होता है, जब हम बाहरी मान्यताओं को अपने आत्माराम गुरु से ऊपर रखते हैं।
डर पर कर्मयोगी का प्रहार
डर को तोड़ने का मार्ग बाहरी नहीं, बल्कि भीतर की आत्मा को सींचना है।
नैतिक डर: याद रखें: डर कर वो जीता है जिसकी नियत और मेहनत में खोट हो। नियत (Niyat) और ईमानदारी ही वह पहला ढाल है जो डर को दूर करती है।
सकारात्मक डर: लोग दुआ की तलाश में जी रहे हैं, हम बद-दुआ के डर में जीते हैं। यह बद-दुआ का डर ही नियत को स्वच्छ रखता है।
विपत्ति को शस्त्र बनाएँ: डर को अपनी ताकत बना लो। विपत्तियों की राख से ही कर्मयोगी का नया अवतार होता है।
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निष्कर्ष (Nishkarsh)
✨ कर्मयोग का अंतिम सत्य: इरादे की शुद्धता
हमारा जीवन 'डर' के सिक्के (आत्मविश्वास की कमी) पर नहीं, बल्कि 'विश्वास' (सृष्टि की आत्मा) की नींव पर खड़ा है। प्रेम ही वह करुणा की अखंड धारा है, जो हमारे इरादे को शुद्ध करती है। जब इरादा नेक होता है, तो सत्य कड़वा नहीं लगता—क्योंकि सत्य ही ब्रह्मांड की जड़ है, और सत्य के बिना धर्म और मानवता का कोई वास नहीं है।
मित्रों! अब डर को बाहर मत खोजो। डर आपके आत्मविश्वास और नियत के भीतर छिपा अज्ञान है। डर को राख बनाकर, आत्मविश्वास और नेक नियत की ज्वाला जलाओ।
🌾 “कर्मयोगी की पहचान, कर्म में नहीं — सत्य में है।” 🌾
— आत्मगुरु।
अतः सत्य के इस यज्ञ में सहभागी बनें।
🙏 अटल घोषणा: मेरे ये मौलिक विचार और सूक्ष्म प्रेरणा यथार्थ का हिस्सा मात्र नहीं हैं। यह ज्ञान की वह पूंजी है, जो आगे चलकर ‘जीवन दर्शन ग्रंथ’ का रूप लेगी। मेरी यात्रा में सहभागी बनें।
“मेरे पास इतना समय कहाँ है कि मैं ग्रंथ, गुरु और पुस्तक पढ़ूँ,
मैं तो ख़ुद को पढ़ने में व्यस्त हूँ,
मैं तो प्रकृति और मानव को पढ़ने में खोया हूँ।”
ज्ञान की पूंजी बाहर नहीं, भीतर की गहराई में है।
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